history of indian cinema | भारतीय सिनेमा का इतिहास

history of indian cinema

History of Indian cinemaभारतीय सिनेमा का इतिहास

भारतीय सिनेमा के इतिहास एक सौ साल पुरानी है | सौ वर्षों की लम्बी यात्रा में
हिन्दी सिनेमा ने न केवल बेशुमार कला प्रतिभाएं दीं बल्कि भारतीय समाज और चरित्र
को गढ़ने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

इस पोस्ट में भारत के सिनेमा की शुरुआत कब हुई और किस तरह से धीरे-धीरे एक ऊंचाई
पे पहुँच कर आज दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री बन गई है इसके बारे में जानेगे |

History of Indian cinema

बॉलीवुड की शुरुआत |History of Indian cinema

भारतीय सिनेमा के पिता दादासाहेब फाल्के को माना जाता है उन्होंने भारत में सबसे पहले
फीचर फिल्म बनाये थे| उनके द्वारा बनाई गई पहली लंबी फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ थी, जिसको
सन् 1913 में प्रदर्शित की गई | ये एक मूक फिल्म (ध्वनिरहित) थी इसके बावजूद, इसे व्यावसायिक
सफलता मिली।

भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फालके और उनके प्रयास

भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहब फालके, सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से प्रशिक्षित सृजनशील
कलाकार थे। दादासाहब फालके एक मंजे हुए थिएटर अभिनेता के साथ-साथ शौकिया जादूगर भी थे।
दादासाहब फालके पहले फोटो केमिकल प्रिंटिंग के व्यवसाय में जुड़े हुए थे | ये करीब 1910 की बात है जब
उनके साझेदार ने इस व्यवसाय से अपना आर्थिक सहयोग वापस ले लिया।

दादासाहब फालके की उम्र उस वक़्त 40 वर्ष की थी | व्यवसाय में हुए घाटे के वजह से वो थोड़ा डिप्रेशन में चले
गए थे | लेकिन कहा गया है जो होता है अच्छे के लिए होता है ; उन्होंने क्रिसमस के अवसर पर ‘ईसामसीह’ पर
बनी एक फिल्म देखी और फिल्म देखने के दौरान ही उन्होंने निर्णय कर लिया कि उनकी जिंदगी का मकसद
फिल्मकार बनना है।

दादासाहब फालके History of Indian cinema

भारत में सदियों पहले एक से बढ़ कर एक महागाथा और पौराणिक महाकाव्यों की रचना हो चुकी थी
उन्हें लगा कि रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक महाकाव्यों से फिल्मों के लिए अच्छी कहानियां
मिलेंगी। दादासाहब फालके के पास सभी तरह का हुनर था। वह प्रिंटिंग के व्यवसाय में काफी प्रयोग किये
थे|

सबस पहले उन्होंने एक कैमरा खरीदा और फिर शहर के अलग-अलग सिनेमाघरों में जा कर फिल्म के
बारे में अध्यन करना शुरू किये | वो लगत 20 घंटे से ज्यादा फिल्मों के ऊपर अध्यन और विशेलषण
करते थे | इस वजह से उनकी एक आँख क रोशनी समाप्त हो गई | उनके अपने मित्र ही पहले आलोचक
थे | सामाजिक निष्कासन और सामाजिक गुस्से को चुनौती देते हुए उन्होंने अपनी पत्नी की जीवन बीमा
पॉलिसी गिरवी रख कर अपने सपने पुरे करने में लग गए |

फरवरी 1912 में, फिल्म प्रोडक्शन का एक क्रैश-कोर्स करने के लिए वह इंग्लैण्ड गए और एक सप्ताह
तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन फिल्म बनाने के तकनीक के बारे में काम सीखा। कैबाउर्न ने
विलियमसन कैमरा, फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल
का चुनाव करने में उनकी मदद की।

फिर वो भारत आकर अपने पहली फिल्म के निर्माण में लग गए | उस दौर में उनके सामने कोई
मानक नहीं थे इसी लिए सभी चीज़े कामचलाऊ ही थी | उन्हें सभी काम खुद से सिख कर करना पड़ा
था | जब कोई नई चीज बनती है तो उसे करने वाला खुद से ही सिख के करता है | भारत में फिल्म निर्माण
एक अनुसंधान जैसा था |

पहली फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ history of indian cinema

काफी मेहनत के बाद उन्होंने पहली फिल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ बनायी। उनको अभिनय सिखना पड़ा,
स्क्रिप्ट भी खुद ही लिखने पड़े, फोटोग्राफी करनी पड़ी और फिल्म प्रोजेक्शन के काम भी करने पड़े।
महिला कलाकार उपलब्ध न होने के कारण उनकी सभी नायिकाएं पुरुष कलाकार थे (वेश्या चरित्र को छोड़कर)।

भारतीय फिल्म की पहली नायिका की भूमिका होटल का एक पुरुष रसोइया सालुंके ने किया था। शुरू में शूटिंग
दादर के एक स्टूडियो में की गई। फिम की शूटिंग दिन में की जाती थी ताकि वह एक्सपोज्ड फुटेज को रात में
डेवलप करते थे और प्रिंट करते थे। इन सब काम में उनकी पत्नी ने उन्हें काफी मदद कि थी |

छह माह में 3700 फीट की पहली लंबी फिल्म तैयार हुई। 21 अप्रैल 1913 को ओलम्पिया सिनेमा हॉल में यह
रिलीज की गई। पश्चिमी फिल्म के दर्शकों ने ही नहीं, बल्कि प्रेस ने भी इसकी उपेक्षा की। फालके जानते थे कि वे
आम जनता के लिए अपनी फिल्म बना रहे हैं| आम दर्शकों के बिच ये फिल्म जबरदस्त हिट रही।

भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ थी, जिसे 1914 में लंदन में प्रदर्शित किया गया था।
उसके बाद दादासाहेब फाल्के ने लगातार 1913 से 1918 तक 23 फिल्मों का निर्माण और संचालन किया |

1920 के दशक की शुरुआत में कई नई फिल्म निर्माण कंपनियां उभरकर समाने आई। और फिल्म
निर्माण को एक गति मिली | 20 के दशक में महाभारत और रामायण पौराणिक और ऐतिहासिक
तथ्यों और एपिसोड के आधार पर बनी फिल्मों का काफी बोलबाला रहा|

टॉकीज की शुरुआत

ध्वनि सहित पहली ‘आलम आरा’ फिल्म थी, जिसे अर्देशिर ईरानी ने बनाया था | फिरोज शाह
‘आलम आरा’ के पहले संगीत निर्देशक थे। आलम आरा के लिए रिकॉर्ड किया गया पहला गीत
‘दे दे खुदा के नाम पर’ था जिसको वाजिर मोहम्मद खान ने गाया था।सन् 1931 में इस
फिल्म को बाम्बे में रिलीज किया गया। आलम आरा के जबरदस्त प्रदर्शन ने भारतीय सिनेमा के
इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की।

इसके बाद, कई फिल्म निर्माण कंपनियों ने एक साथ कई फिल्मों का निर्माण और रिलीज किया,
1927 में, 108 फिल्मों का निर्माण किया गया था | ये वृद्धि लगातार जारी रहा 1931 में 328 फिल्मों
का निर्माण किया। इसी समय, एक बड़ा सिनेमा हॉल भी निर्मित किया गया जिससे दर्शकों की
संख्या में एक महत्वपूर्ण वृद्धि हुई।

1930 और 1940 के दौरान कई प्रख्यात फिल्म हस्तियों जैसे देवकी बोस, चेतन आनंद,
एस.एस. वासन, नितिन बोस और कई अन्य प्रसिद्ध लोग को फिल्मी परदे पर उतारा गया।

भारतीय सिनेमा की शुरुआत डायलॉग के माध्यम से नहीं बल्कि गानों के माध्यम से हुई। और ये
एक प्रचलन बन गया और बिना गानों के फिल्में अधूरी मानी जाती हैं।

साल 1935 में वाडिया मूवी टोन की 80 हजार रुपये की लागत से निर्मित फिल्म ‘हंटरवाली’ ने उस
जमाने में लोगों केबिच धूम मचा दी | अभिनेत्री नाडिया की पोशाक और पहनावे को उस ज़माने में
महिलाओं ने फैशन ट्रेंड के रूप में अपनाया।

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