फिल्म-निर्माण का यह नया युग जिसे हम ‘डिजिटल फिल्ममेकिंग’ कहते हैं, उसने सिनेमा की परंपरागत प्रक्रियाओं में अद्वितीय बदलाव लाया है। डिजिटल तकनीक की चपेट में आकर फिल्म-निर्माताओं को मिला एक नया साझा, जिसने न केवल निर्माताओं को अधिक स्थानांतरित किया है बल्कि क्रिएटिविटी को भी नई ऊचाइयों तक पहुंचाया है।
डिजिटल फिल्ममेकिंग फिल्म-निर्माण की आधुनिक प्रक्रिया है, जिसमे फिल्म के शुरूआती
प्रक्रिया “प्री-प्रोडक्शन” से ले कर अंतिम प्रक्रिया “पोस्ट-प्रोडक्शन” तक डिजिटल तकनीक का
प्रयोग किया जाता है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग के मदद से फिल्म-निर्माता अब काफी ज्यादा क्रिएटिव भी हो गए हैं, और
डिजिटल-फिल्ममेकिंग में काल्पनिक सीन को तैयार करना भी काफी ज्यादा आसान हो गया है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग टेक्नोलॉजी आने से पहले फिल्म कैसे बनती थी?
Table of Contents
पिछले 100 सालों से चली आ रही फिल्म निर्माण की जो कला थी, वो काफी कठिन और काफी लागत वाली थी,
जो हर किसी के लिए संभव नहीं था | पारम्परिक तरीके से फिल्म बनाने में जो कैमरा उपयोग होता था
वो (35mm फिल्म स्टॉक) रील वाला कैमरा होता था | इसको एडिट करने की तरीके भी काफी कठिन
और उलझा हुआ होता था |
डिजिटल फिल्ममेकिंग की तकनी आने से पहले फिल्म की शूटिंग में जो कैमरा का
इस्तेमाल होता था उसका रील महंगा होता था |
एक रील को एक ही बार फिल्म शूट के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता था |
फिल्म रील को दुबारा इस्तेमाल करने पे उसकी क्वालिटी ख़राब हो जाती थी |
डिजिटल फिल्ममेकिंग में किस प्रकार से फिल्म कि शूटिंग होती है
डिजिटल फिल्ममेकिंग में फिल्म को शूट करने करने के लिए ‘Digital Filmmaking Camera‘ का इस्तेमाल
किया जाता है |’Digital Filmmaking Camera‘ में स्टोरेज के लिए रील के जगह ‘मेमोरी कार्ड’ या फिर ‘हार्ड डिस्क’
का इस्तेमाल होता है |
डिजिटल कैमरा की सबसे खाश बात है, एक बार फिल्म शूट करने के बाद उस डाटा को हार्ड -डिस्क
या कंप्यूटर में में कॉपी कर के और कैमरा के मेमोरी कार्ड को फॉर्मेट करने के बाद दुबारा इस्तेमाल
कर सकते हैं, इसमें क्वालिटी का कोई फरक नहीं होता है |
एक मेमोरी कार्ड को जितनी बार चाहे उतनी बार आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग में स्पेशल इफेक्ट्स किस प्रकार से इस्तेमाल होता है
डिजिटल फिल्ममेकिंग टेक्नोलॉजी आने से पहले फिल्म निर्माण में स्पेशल इफेक्ट्स
के लिए काफी मेहनत करना होता था |
अगर VFX की बात करें तो वो भी एकदम रियल करना होता था |
उदाहरण के लिए अगर फिल्म के किसी सीन में आग , ब्लास्ट , एक्सीडेंट ये सभी दिखाना
होता था, तो फिल्म सेट पे वास्तविक में इन सभी एक्शन को शूट किया जाता था |
Digital Filmmaking तकनीक आने से पहले विजुअल इफेक्ट्स(VFX) और स्पेशल इफेक्ट्स
इस्तेमाल करने में खर्च भी ज्यादा होता था और उसके साथ-साथ खतरा भी ज्यादा रहता था |
किसी भी पब्लिक जगह पे ऐसे सीन को शूट करने की अनुमति नहीं होती है| इसके लिए
फिल्म-निर्माता को एक प्राइवेट प्रॉपर्टी लेनी होती थी और वहीं पे फिल्म-निर्माण का सेट तैयार
किया जाता था |
Digital Filmmaking में विजुअल इफेक्ट्स और स्पेशल इफेक्ट्स को इतेमाल करना
काफी आसान हो गया | CGI ( कंप्यूटर जनरेटेड इमेजरी ) के माध्यम से किसी भी सीन में
आसानी से विजुअल इफेक्ट्स इस्तेमाल किया जा सकता है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग में लागत
परम्परिक फिल्म निर्माण की प्रक्रिया काफी लागत भरा था जिसके वजह से
ज्यादा लोग फिल्म निर्माण में नहीं आते थे |
जब से Digital Filmmaking तकनीक आया फिल्म बनाने की लागत में काफी कमी
आ गई, जो पैसा फिल्म रील पे खर्च होता था वो कम गया |
जिसके वजह से नए फिल्म निर्माता को फिल्म निर्माण इंडस्ट्री में रूचि जगाया है,और यही वजह
है की नए फिल्म-निर्माता काफी जायद संख्या में फिल्म निर्माण इंडस्ट्री में आये हैं |
पारम्परिक फिल्म-निर्माण प्रक्रिया में सीन में अगर आग और ब्लास्ट दिखाना होता था उसमे
काफी खर्च करना परता था,लेकिन डिजटल फिल्ममेकिंग में वो सभी सीन “कंप्यूटर जनरेटेड इमेजरी”
के मदद से तैयार किया जाने लगा और फिल्म निर्माण में होने वाला खर्च भी कम गया है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग के फायदे
“Digital Filmmaking” का सबसे बड़ा लाभ ये है, की इसमें लागत काफी कम है जो लोग
फिल्म निर्माण के क्षेत्र में नए हैं और जिनके पास वजट भी कम है वो लोग आसानी से कम बजट
में एक अच्छी फिल्म बना सकते हैं और फिल्म निर्माण सिख सकते हैं |
Digital Filmmaking के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला उपकरण भी काफी कम और आसान
है|एक डिजिटल कैमरा , स्टोरेज , और फिल्म एडिटिंग के लिए एक कंप्यूटर एक उपलब्ध हो
तो आसानी से ‘Digital Filmmaking’ इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरआत की जा सकती है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग में एडिटिंग
फिल्म शूट होने के बाद उसकी एडिटिंग की जाती है| फिल्म निर्माण की सबसे अंतिम प्रक्रिया
फिल्म एडिटिंग होता है | फिल्म एडिटिंग करने के बाद फिल्म रिलीज करने के लिए तैयार हो
जाता है |
एडिटिंग का मुख्य उद्देश्य होता है फिल्म के वीडियो के उस पार्ट को हटाना जो उपयोग में नहीं हो और
सभी क्लिप को एक साथ जोड़ना साथ ही साथ उसमे ऑडियो और डायलॉग को जोड़ना होता है |
जैसे-
अगर कोई वीडियो रिकॉर्ड हुई उसमे जब तक कैमरा को ऑफ किया गया तब तक कुछ
सेकंड की एक्स्ट्रा वीडियो भी रिकॉर्ड हो गई तो उस एक्स्ट्रा पार्ट को हटाना ही
फिल्म एडिटिंग कहलाता है|
फिल्म एडिटिंग दो प्रकार की होती है-
- लीनियर वीडियो एडिटिंग
- नॉन लीनियर वीडियो एडिटिंग
Digital Filmmaking में “नॉन लीनियर वीडियो एडिटिंग” तकनीक का प्रयोग होता है |
लीनियर वीडियो एडिटिंग (एनालॉग ) :
पारम्परिक वीडियो एडिटिंग की प्रक्रिया जो सालों से चली आ रही थी वो कुछ इस तरह थी-
जब फिल्म शूट हो जाता था तब उस रील को VTR -Machine में लगाया।
उसके बाद शॉट और सीन के हिसाब से वीडियो को एडिट करने के लिए रील को कट
किया जाता था, फिर जो पार्ट वीडियो में नहीं दिखाना है उस पार्ट को कट कर के बीच
से अलग कर दिया जाता था और फिर ग्लू या cello-tape की मदद से जोड़ दिया जाता था ।
ये एकदम पुराने ज़माने की फिल्म एडिटिंग की प्रक्रिया थी ।
ऐसा नहीं है की एकदम से सबकुछ बदल गया, और हमलोग पारम्परिक फिल्ममेकिंग
की दुनिया से सीधे डिजिटल हो गए।
ऐसा बिलकुल नहीं हुआ काफी सारे बदलाव हुए और VTR (वीडियो टेप रिकॉर्डर),
VCR (वीडियो कैसेट रिकॉर्डर), VCD (वीडियो कॉम्पैक्ट डिस्क), डीवीडी-प्लेयर ये सारे
ज़माने से होते हुए आज इस Digital Filmmaking के दौर में पहुंचे हैं |
नॉन लीनियर वीडियो एडिटिंग :
‘नॉन-लीनियर वीडियो एडिटिंग’ की प्रक्रिया Digital Filmmaking में प्रचलन
में आया |नॉन लीनियर एडिटिंग में ओरिजिनल फुटेज को बिना छेड़-छार किये एडिटिंग
किया जाता है |
फिल्म को हार्ड-डिस्क या मेमोरी कार्ड से वर्कस्टेशन के कंप्यूटर में कॉपी
कर लिया जाता है, और फिर उसको नॉन-लीनियर वीडियो एडिटिंग सॉफ्टवेयर
की मदद से एडिट करते हैं| इसमें ओरिजनल फुटेज के ऊपर कोई इफ़ेक्ट नहीं आता है |
डिजिटल फिल्ममेकिंग में रिलीज प्रक्रिया
अगर फिल्म रिलीज की बात करे तो उसमे भी काफी कुछ बदलाव आया |
पारम्परिक फिल्म मेकिंग में रिलीज भी फिल्म रील प्रोजेक्टर के माध्यम से होता था |
धीरे धीरे ये तकनीक भी बदलते गया और Digital Filmmaking के दौर में
‘डिजिटल सिनेमा प्रोजेक्शन’ तकनीक का प्रयोग होने लगा |
मुख्य रूप से सैटेलाइट के माध्यम से सिनेमा घरो में फिल्म रिलीज़ होता है |
वही होम डिस्ट्रीब्यूशन की बात करे तो पहले सीडी/ डीवीडी के माध्यम से लोगो
के घर तक फिल्म पहुँचता था वहीं अब ऑनलाइन के माध्यम से डिस्ट्रीब्यूट होता है|
डिजिटल फिल्ममेकिंग से निर्माण प्रक्रिया में बदलाव
डिजिटल फिल्ममेकिंग की प्रक्रिया की शुरुआत ‘प्री-प्रोडक्शन’ से होती है, जहां स्क्रिप्ट राइटिंग से लेकर चित्रपट की योजना तक सब कुछ डिजिटल माध्यमों में होता है। स्क्रिप्ट राइटिंग का काम भी अब कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से होता है, जो निर्माता को सीधे और सुचनात्मक तरीके से अपनी कहानी को व्यक्त करने में मदद करता है।
प्रोडक्शन प्रक्रिया में डिजिटल फिल्ममेकिंग से बदलाव
‘प्रोडक्शन’ के चरण में, डिजिटल कैमरा ने फिल्म-निर्माताओं को नए दृष्टिकोण प्रदान किया है। इसमें रील की जगह ‘मेमोरी कार्ड’ और ‘हार्ड डिस्क’ का उपयोग होता है, जिससे विरोधाभास मुक्त शूटिंग का मजा लिया जा सकता है। एक मेमोरी कार्ड को बार-बार इस्तेमाल करने में कोई रुकावट नहीं होती और फिल्म निर्माता अपनी क्रिएटिविटी को बेहतरीन तरीके से व्यक्त कर सकता है।
पोस्ट-प्रोडक्शन प्रक्रिया में डिजिटल फिल्ममेकिंग से बदलाव
फिल्म शूट होने के बाद, ‘पोस्ट-प्रोडक्शन’ में भी डिजिटल तकनीक का जादू दिखाई देता है। नॉन-लीनियर एडिटिंग सॉफ्टवेयर के माध्यम से फिल्म को एडिट करने में आसानी हो जाती है। यह एक संपूर्ण नए दृष्टिकोण को खोलता है, जहां ओरिजिनल फुटेज को बिना किसी छेड़-छार के संपादित किया जा सकता है। एडिटिंग का कार्य तेज़ी से और सुधारित तरीके से हो सकता है, जिससे कि फिल्म का उच्च गुणवत्ता बना रहे।
डिजिटल फिल्ममेकिंग के साथ साथ आने वाला तकनीकी प्रगति ने निर्माताओं को नई विशेष विधियों का अनुसरण करने का अवसर दिया है। उन्होंने विशेष प्रभाव, सीजन विकल्प, और आधुनिक साउंड टेक्नॉलॉजी का उपयोग करने में आसानी महसूस की है, जिससे कि उन्हें अपनी कहानियों को और अधिक सांगीतिक रूप से व्यक्त करने का मौका मिलता है।
डिजिटल फिल्ममेकिंग का नया युग सिनेमा को नई दिशा में ले जा रहा है। तकनीकी विकास और सांगीतिक साधनों का उपयोग करके, निर्माताओं को नई कहानियों को शैली से प्रस्तुत करने का मौका मिलता है। इससे नहीं केवल फिल्म-निर्माताओं को नए रूपों का आविष्कार हुआ है, बल्कि दर्शकों को भी एक नई और उत्कृष्ट अनुभव प्रदान किया जा रहा है। इस प्रगति की दिशा में, डिजिटल फिल्ममेकिंग ने सिनेमा को एक नए और उत्कृष्ट स्तर पर ले जाने का कारगर साधन बना रखा है।
FAQ:
फिल्मों का डिजिटलीकरण कैसे किया जाता है?
फिल्मों का डिजिटलीकरण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिससे रील फिल्म को डिजिटल फॉर्मेट में तब्दील किया जाता है। इसमें तकनीकी साधनों का उपयोग करके फिल्म को स्कैन किया जाता है और इसे डिजिटल मीडिया में संग्रहित किया जाता है।
पहली डिजिटल फिल्म कौन सी थी?
पहली डिजिटल फिल्म की शुरुआत 1970s और 1980s में हुई, जबकि पहली फुल-लेंथ डिजिटल एनिमेशन फिल्म “तॉय स्टोरी” (Toy Story) थी जो 1995 में रिलीज हुई और आम दर्शकों को प्रभावित करने में सफल रही।
डिजिटल फिल्म निर्माण के क्या फायदे हैं?
डिजिटल फिल्ममेकिंग ने फिल्म निर्माताओं को शूटिंग, पोस्ट-प्रोडक्शन, और संग्रहण के क्षेत्र में अनेक फायदे प्रदान किए हैं। इससे निर्माताओं को अधिक स्थानांतरित करने की सुविधा होती है और फिल्म बनाने में तेजी और सुगमता आती है।
डिजिटलीकरण प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं?
डिजिटलीकरण प्रक्रिया एक तकनीकी प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न तकनीकी साधनों का उपयोग करके अनुक्रमणिका या डेटा को डिजिटल रूप में संग्रहित किया जाता है। यह तकनीकी सुधार और सुविधाएं प्रदान करने में मदद करती है।
डिजिटल फिल्म कब शुरू हुई?
डिजिटल फिल्ममेकिंग की शुरुआत विभिन्न प्रारंभिक एक्सपेरिमेंट्स के साथ 1980s में हुई, लेकिन वास्तविक उभार 1990s में हुआ जब पहले डिजिटल कैमरे उपलब्ध होने लगे।
क्या 35mm फिल्म को डिजिटल में बदला जा सकता है?
जी हां, 35mm फिल्म को डिजिटल में बदलना संभव है। इस प्रक्रिया को ‘फिल्म डिजिटाइजेशन’ कहा जाता है, जिसमें फिल्म को स्कैन करके उसे डिजिटल फॉर्मेट में बदला जाता है।
फिल्म डिजिटल से अलग क्यों दिखती है?
फिल्म डिजिटल और फिल्म रोल की भिन्नता का कारण उनकी तकनीकी विशेषताएं हैं। फिल्म डिजिटल स्वरूप में, चित्र बहुत उच्च रिजोल्यूशन और बेहतर कलर गहराई के साथ दिखाई देता है, जबकि फिल्म रोल की चमक और टेक्स्चर स्वभाव से अलग होती हैं।
क्या सभी फिल्में अब डिजिटल रूप से शूट की जाती हैं?
हां, आजकल बहुत सी फिल्में डिजिटल तकनीक का उपयोग करके शूट की जाती हैं। डिजिटल फिल्ममेकिंग के फायदे में शामिल कम लागत, तेज पोस्ट-प्रोडक्शन, और बेहतर तकनीकी विकल्प शामिल हैं।
फिल्म शूटिंग में कौन सा कैमरा इस्तेमाल होता है?
डिजिटल फिल्ममेकिंग के लिए विभिन्न कैमरा उपलब्ध हैं, जैसे कि ‘Digital Filmmaking Camera’ जिसमें मेमोरी कार्ड और हार्ड डिस्क का इस्तेमाल होता है।
एक फीचर फिल्म में कितने रील होते हैं?
एक फीचर फिल्म में कई रील होते हैं, जिन्हें एक से ज्यादा बार बदला जा सकता है। रील की लंबाई फिल्म की लंबाई के हिसाब से तय की जाती है।
35mm में फिल्म क्यों देखते हैं?
35mm फिल्म का उपयोग सिनेमा में चलने वाले प्रोजेक्टर्स के साथ किया जाता है और इसमें एक विशेष चमक और गहराई होती है, जो सामान्य दर
Interesting!