Filmmaking in hindi – फिल्ममेकिंग का हिंदी मतलब होता है फिल्म निर्माण | किसी भी कहानी
को फिल्म यानि सिनेमा के रूप में दर्शक तक पहुंचाने के लिए जो प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता
है वो Filmmaking यानि फिल्म निर्माण कहलाता है |
Filmmaking के मुख्य प्रक्रिया प्री-प्रोडक्शन, प्रोडक्शन , पोस्ट-प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन है |
इन सभी प्रक्रिया और स्टेज के बारे में क्रमानुसार काफी डिटेल्स में बताया
गया है |
Development
Table of Contents
- वेब सीरीज
- लघु-फिल्म
- टेलीविजन सीरीज
- डॉक्यूमेंट्री
- फीचर-फिल्म
Filmmaking में पहले फिल्माकर को ये चयन करना होता है कि किस प्रकार कि फिल्म वो
बनाना चाहता है | वो ‘कॉमेडी फिल्म’ हो सकती है , वो ‘लव-स्टोरी’ भी हो सकती है जिसको
रोमांस फिल्म भी कहते हैं |थ्रीलर-ड्रामा, क्राइम-थ्रीलर, हॉरर(भूतिया) या फिर एक्शन-फिल्म
भी हो सकती है या फिर ये मिक्स-अप फिल्म भी हो सकती है |
पूरी तरह से फिल्म निर्माता ये चयन करता हैं कि वो किस तरह के फिल्म में
अपना पैसा लगाना चाहता है |
फिर कोई टॉपिक का चयन होता है जिसमे कुछ सोशल मैसेज हो |
सभी फिल्मे एंटरटेनमेंट को ध्यान में रख कर ही बनाई जाती है
लेकिन उनमे कही न कही छोटी सी भी सोशल मैसेज जरूर होती है
यही पे लेखक को कहानी लिखने के लिए वो विषय दे दिया जाता है |
फिर बात आती है बजट की | Filmmaking में बजट सबसे महत्पूर्ण है |
Important Term in Filmmaking is budgeting :
फिर बात आती है बजट की | Filmmaking में बजट सबसे महत्पूर्ण है |
फिल्म कितने रूपये के अंदर बनेगी
ये फिल्म निर्माता निर्णय लेते हैं | ऐसा नहीं कि जितना बजट है उतना में
फिल्म बन ही जयेगी ये थोड़ा ऊपर-निचे हो सकता है लेकिन एक अनुमान लगा लिया जाता है
कि इस फिल्म को इतने रूपये के अंदर बनानी है |
और ये सब कहानी लिखने के पहले तय होता है
क्यों कि जब कहानीकार उस फिल्म को लिखता है तो वो बजट को भी ध्यान में रख के लिखता है |
इसके बारे में बिस्तार से आगे ‘प्री-प्रोडक्शन‘ टॉपिक के अंदर बताया गया है.
फिल्म को निर्देशित कौन करेगा वो भी Filmmaking के शुरुआत में निर्णय हो जाता है
और वो निर्णय ‘फिल्म निर्मता-कंपनी’ के अधीन होता है |
‘स्क्रिप्ट कवरेज’ नाम कि एक प्रक्रिया के अंदर अगर कहानी में कुछ बदलाव कि जरूरत होती है
तो वो पटकथा लेखक को सलाह दी जाती है| कहानीकार को ही पटकथा लेखक बोलते हैं
अंग्रेजी में उसे ‘स्क्रिप्ट राइटर‘ या स्क्रीनप्ले राइटर भी बोलते हैं |
कुछ महीने के अंदर फिल्म कि कहानी तैयार हो जाती है।
फिल्म के संभावित बाजार और संभावित वित्तीय सफलता का आकलन करने के लिए एक
फिल्म वितरक से Filmmaking प्रारंभिक चरण में ही संपर्क किया जाता है।
मुख्य पात्र के लिए कौन सा अभिनेता को रोल दिया जयेगा कौन सी अभिनेत्री का चयन होगा
वो सब प्रारम्भिक चरण में ही फाइनल हो जाता है |
Film Distribution Discuss In Development
फिल्म सिर्फ थिएटर में रिलीज़ के लिए ही नहीं बनाई जाती है
उसको पूरी दुनिया में रिलीज़ के लिए ‘कॉपीराइट’ कि प्रक्रिया को भी ध्यान में रखा जाता है
और उसके ऊपर भी विचार विमर्श होता है| निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर
एक फिल्म पिच, या ट्रीटमेंट तैयार करते हैं,और इसे संभावित फाइनेंसरों के
सामने पेश करते हैं | और ये बड़ी दुखद बात है कि कई फिल्मे
यही पे आकर ख़तम हो जाती है इससे आगे नहीं बढ़ पाती क्यों कि
अगर फिल्म कि कहानी/पटकथा बिज़नेस के मामले में कमजोर दिखती है
तो फाइनेंसर निवेश करने से इंकार का देते हैं और Filmmaking
की प्रक्रिया बंद कर दी जाती है और फिल्म नहीं बन पाती है|
कहानी कि आईडिया अगर फाइनैंसर को पसंद आ गया तो बस फिल्म को
यही पे हरी झंडी मिल जाती है आम तौर पर एक प्रमुख (फिल्म स्टूडियो, फिल्म परिषद या स्वतंत्र निवेशक)
इसमें शामिल पक्ष एक सौदे पर हस्ताक्षर करते हैं और अनुबंध पर हस्ताक्षर करते हैं।
और बस फिल्म अगली चरण में चली जाती है |
Preproduction Process of Filmmaking in hindi
स्क्रीनराइटिंग
i. आईडिया :
आईडिया स्टोरी राइटिंग का सबसे शुरू का पार्ट है | आईडिया 1 लाइनर होता है
मतलब जो कहानी लिखनी है वो किस बारे में है | जैसे अगर बायोपिक बनानी है
तो पहले सोचना पड़ेगा की किस के ऊपर बनानी है मान ले अगर ये फाइनल हो गया की
किसी स्पोर्ट्स पर्सन के ऊपर बायोपिक बनानी है तो फिर स्पोर्ट्स से जुड़े वैसे किरदार ढूढ़ने होंगे
जिसके जिंदगी में अनेक तरह की कठिनाइया आयी हो और एक लंबे समय के संघर्ष के बाद
उसको सफलता मिली हो तो ये आईडिया कहलाता है |
आईडिया के अंदर मुख्यतः तीन तथ्य एकदम से स्पष्ट होने चाहिए –
- 1. चरित्र
- 2. उस चरित्र को उसके लक्ष्य की प्राप्ति में आने वाली बाधाये
- 3. लक्ष्य
अब अगर हम चरित्र की बात करे तो इसका मतलब है की पटकथा(स्क्रिप्ट)
जिस सख्स के बारे में लिखी जा रही है उसका attitude कैसा है|
वो अच्छा भी हो सकता है बुरा भी हो सकता है | उसकी भावनाएँ उसके शैली वो कैसे सोचता है
उसके व्यक्तित्व को उस कहानी के किरदार के साथ जुड़ा होना बहुत जरूरी है
उस किरदार की अपनी जिंदगी के अंदर क्या उतार-चढ़ाव आते है
और उन सारी परिस्थितयो में वो कैसे प्रतिक्रिया देता है कैसे रियेक्ट करता है
ये सारी बाते चरित्र(character ) के अंदर आता है| फिल्म की कहानी में किरदार ही जान होती है
एक बार किरदार पता चल गया तो पूरी कहानी उस किरदार के सहारे ही आगे बढ़ती है |
(Goal) लक्ष्य
फिर बात आती है उस किरदार का लक्ष्य (goal) क्या है जैसे वास्तविक जिंदगी में
हरेक सख्श अपने-अपने किरदार में होते है सबकी अपनी-अपनी सख्सियत होती है
सबका अपना अलग लक्ष्य होता है वैसे ही फिल्मो में भी हरेक किरदार के अलग-अलग लक्ष्य होते है |उदाहरण के तौर पे अगर कहानी किसी ईमानदार पुलिस के बारे में है तो उस पुलिस वाले का लक्ष्य होगा ‘ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाना’ और अगर वो पुलिस वाला वाला मुख्य किरदार है तो आपके कहानी का भी लक्ष्य यही है वो ईमानदारी से कैसे ड्यूटी निभाता है|
(‘Conflict’ संघर्ष )
एक बार लक्ष्य पता चल गया तो फिर आता है कहनी के तीसरे तथ्य और वो है (‘Conflict’ संघर्ष )
उस ईमानदारी को बरकरार रखना | उसके सामने काफी सारी बाधाएं आएगी
कभी उसके सामने पारिवारिक समस्या हो सकती है कभी सामाजिक समस्या हो सकती है |
काफी तरह के उतार-चढ़ाव होंगे उसके जिंदगी में और उन समस्या में वो कैसे प्रतिक्रिया देता है
कैसे रिएक्ट करता है इसी के सहारे आपके कहनी को एक दिशा मिलती रहेगी और कहानी आगे बढ़ती रहेगी|
वही कहानी के अंदर नकरात्मक किरदार भी होते है जिसकी फिल्म के अंदर एक अहम् भूमिका होती है|
नकारात्मक किदार ही कहानी को मजबूत बनाती है उसका भी एक लक्ष्य होता है
वो हमेशा मुख्य किरदार के लिए बाधा उत्पन्न करता है
कहानी में दोनों किरदार के जिंदगी में उतार चढ़ाव हो सकते हैं|
अब बात आती है की एक कहानी के अंदर कितने किरदार हो सकते हैं ?
ये मुख्य रूप से उस कहानी के ऊपर और फिल्म के बजट के ऊपर भी निर्भर करती है
किसी भी चीज को लिखना और उसे वास्तव में परदे पे दिखना दोनों में बहुत फर्क होता है |
इस लिए फिल्म की कहानी लिखने से पहले उसके बजट के बारे में ध्यान रखा जाता है |
हिंदी सिनेमा में मुख्य दो किरदार होते ही हैं एक जो संघर्ष करता है और
दूसरा जो पहले किरदार के लिए बाधा बनता है जिसे vilain भी बोला जाता है |
बाकि सहायक किरदार में परिवार और दोस्त ये सभी कहानी के मांग पे निर्भर करता है |
प्लाट-स्ट्रक्चर : (plot is the sequence of events.)
Film प्लाट घटनाओ का एक क्रम होता है और प्रत्येक घटना अगले घटना को प्रभाबित करता है ये घटनाक्रम एक दूसरे से जुड़े होते हैं |
अब अगर 3 एक्ट-स्ट्रक्चर की बात करे तो
ACT1- ESTABLISH
ACT2- BUILD
ACT3- RESOLVE
3 एक्ट-स्ट्रक्चर में 1:2:1 के अनुपात में प्लॉट का स्ट्रक्चर होता है
मतलब अगर आपने 4 पेज के कहानी लिख रहे है तो 1 पेज Act1
और फिर 2 पेज में Act2 होगा और फिर अंत के पेज में Act3 होगा|
ii. स्क्रिप्ट :
कहानी में चरित्र के साथ संवाद और फिल्म के सीन के अनुसार कैमरा-एंगल,
शॉट और भी डिटेल्स लिखने की प्रक्रिया स्क्रिप्ट कहलाता है |
संवाद : कौन से कैरेक्टर Film के सीन में क्या बोल रहा है इसको संबाद बोलते हैं |
स्क्रिप्ट को ही स्क्रीनप्ले भी बोलते हैं बस स्क्रीनप्ले में डिटेल्स ज्यादा होता है |
स्क्रीनप्ले के अंदर स्क्रीन पे कौन सा सीन कैसा दिखेगा ये देना जरूरी होता है |
फिर स्टोरीबोर्डिंग की जाती है |
स्टोरीबोर्डिंग :
स्टोरी बोर्डिंग के अंदर प्रत्येक शॉट को एक रफ-चित्र के माध्यम से रिफरेन्स तैयार किया जाता है |
प्री-प्रोडक्शन के अंदर ही ये फाइनल होता है की फिल्म किस वीडियो फॉर्मेट में शूट होगा |
कौन-कौन से कैमरा का इस्तेमाल होगा | DOP जो है इस कैमरे के फंक्शन के बारे में जनता है की नहीं |
सीन शॉर्ट-लिस्ट और बाकि चीजे भी प्री-प्रोडक्शन के अंदर ही फाइनल होता है |
फिल्म शूट में जो भी चीजे लगती उसका एक लिस्ट तैयार करना और शूटिंग से रिलेटेड जितनी भी चीजे होती है
सभी चीज के ऊपर कम्पलीट डिस्कशन किया जाता है ताकि आगे प्रोडक्शन में शूट के समय दिक्कत न हो |
जब सबकुछ तैयार हो गया तो अब बारी आती है फिल्म शूट करने की और ये Filmmaking के प्रोडक्शन प्रक्रिया के अंदर आती है ।
Production Process of Filmmaking in hindi
Filmmaking प्रोसेस में प्रीप्रोडक्शन के बाद प्रोडक्शन आता है ।
प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के अंदर प्रोडक्शन मैनेजर, डायरेक्टर ,एक्टर , फिल्म क्रू ,
(DOP) डायरेक्टर ऑफ़ फोटोग्राफी , कैमरा पर्सन , बाकि टीम के सदस्य होते हैं ।
प्रोडक्शन के अंदर ही सेट तैयार होता है प्री-प्रोडक्शन में कितनी मेहनत हुई वो
प्रोडक्शन के अंदर दिख जाता है अगर सब कुछ पेपर पे पूरी तरह से तैयार किया गया है
तो शूट के समय बिलकुल दिक्कत नहीं होती है । फिल्म की शूटिंग की प्रक्रिया ख़त्म होने के बाद
फिल्म एडिटिंग के लिए पोस्ट-प्रोडक्शन में चली जाती है ।
Post-Production Process
Filmmaking प्रोसेस में पोस्ट प्रोडक्शन एक प्रक्रिया है
जिसके अंदर फिल्म की एडिटिंग ,डबिंग, कलर ग्रेडिंग की जाती है ।
अगर कुछ VFX इस्तेमाल करना हो तो वो भी पोस्ट प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में होता है।
फिल्म की एडिटिंग फिल्म एडिटर और फिल्म निर्देशक के देख रेख में होता है !
VFX के लिए अलग डिपार्टमेन्ट होता है लेकिंग काम सभी एक दूसरे जुड़ कर ही करते हैं ।
जब फिल्म की एडिटिंग हो जाती है तो उसे कलर ग्रेडिंग के लिए DI-STUDIO भेजा जाता है
फिर वहाँ भी निर्देशक के देख रेख में फिल्म के लुक के ऊपर काम किया जाता है और
कलर ग्रेडिंग के बाद फिल्म रिलीज के लिए बन कर तैयार हो जाती है ।
तब बारी आता है डिस्ट्रीब्यूशन की मतलब फिल्म को किस प्रकार से रिलीज करना है
उसके ऊपर काम होता है ।
Distribution Process of filmmaking in hindi
Filmmaking का सबसे अंतिम चरण डिस्ट्रीब्यूशन होता है |
डिस्ट्रीब्यूशन के तहद फिल्म को रिलीज किया जाता है | अगर फिल्म सिर्फ थिएटर के लिए बनी है
तो उसके प्रमोशन ऑफलाइन तरीके से भी की जाती है और अगर फिल्म सिर्फ ऑनलाइन
प्लेटफार्म के लिए बनी है तो उसकी प्रमोशन सिर्फ ऑनलाइन होती है ।
फिल्म का प्रमोशन डिस्ट्रीब्यूशन की पूरा किया जाता है |
फिल्म में काफी तरह के कॉपीराइट होते है जैसे टीवी के लिए अलग कॉपीराइट थिएटर के लिए
अलग और ऑनलाइन डिस्ट्रीब्यूशन के अलग तो डिस्ट्रीब्यूशन के अंदर ही कॉपीराइट भी तैयार किया जाता है
फिर Film को रिलीज कर दिया जाता है |
Career And Opportunity In Filmmaking
फिल्ममेकिंग में करियर की काफी संभावनाएं हैं | काफी सारे जॉब पोस्ट हैं जिसका उचित ट्रेनिंग लेकर
Filmmaking के क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं |
- डायरेक्टर
- स्क्रिप्ट राइटर
- प्रोडूसर
- एडिटर
- सिनेमेटोग्राफर
- डायरेक्टर ऑफ़ फोटोग्राफी
- साउंड इफेक्ट्स आर्टिस्ट
- कोरिओग्राफर
- स्पेशल इफेक्ट्स आर्टिस्ट
- CGI आर्टिस्ट
- VFX विजुअल इफेक्ट्स आर्टिस्ट
- कास्टिंग डायरेक्टर
- लोकेशन मैनेजर
- कलर ग्रेडिंग (colorist)
- प्रोस्थेटिक मेकअप आर्टिस्ट
- डबिंग आर्टिस्ट
- स्टन्टमैन
Film School
वैसे तो काफी सारे फिल्म स्कूल हैं उनमे से कुछ अच्छे फिल्म स्कूल का नाम निचे लिखा
हुआ हैं-
National School of Drama”(NSD) Delhi
Film and Television Institute of India (FTII) Pune
SATYAJIT RAY FILM & TELEVISION INSTITUTE (SRFTI) Kolkata
बेहतरीन जानकारी बिल्कुल आसान भाषा में।
बहुत ही बेहतरीन जानकारी दी है।
धन्यवाद
बहुत धन्यवाद आपको चित्रपट के विचित्र दुनिया से हमें इतने सरल और सहज रूबरू कराने के लिए।
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